
राकेश कुमार(लेखक लोकराज के लोकनायक)
औरंगाबाद। मंगलवार की दो खबरें चौंकाने वाली रहीं. प्रथमदृष्टया दोनों खबरें आपको मामूली प्रकृति की प्रतीती देती दिखेंगी, किन्तु इन खबरों की गंभीरता चिंतन करने को विवश कर देंगी और सीधा सिस्टम से सवाल करने वाली हैं.
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पहली खबर
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मप्र के दुर्ग में दो दिन पहले डकैती हुई और उसका अभियुक्त पकड़ा गया. दुर्ग के पुलिस अधीक्षक के हवाले से वहाँ के अखबारों में खबर छपी कि अभियुक्त औरंगाबाद, बिहार के सांसद सुशील कुमार सिंह के साढ़ू का लड़का है. मानलिया कि अभियुक्त ने ऐसा एकवालिया बयान पुलिस को दिया होगा, किंतु पुलिस अधीक्षक,दुर्ग ने बिना जाँच-परख के मीडिया को इस आशय की सूचना उपलब्ध करायी.
इस खबर मेंं कुल चार पक्षकार हैं. अभियुक्त, दुर्ग के पुलिस अधीक्षक,मीडिया और पहले के तीनों पक्षकारों घालमेल से उभरे नये पक्षकार सांसद सुशील बाबू.
तीन पक्षकारों के घालमेल से चौथे पक्षकार की व्यक्तिगत छवि व प्रतिष्ठा और परिवार का मान-सम्मान-प्रतिष्ठा की हानि हुई क्योंकि सांसद ने प्रेस वार्ता कर स्पष्ट किया है कि उनके एक मात्र साढ़ू के एकमात्र सुपुत्र मोहित हैं, जबकि पुलिस की पकड़ में आया अभियुक्त दिव्यांग है और उसका नाम भी अलग है. यह खबर भ्रामक व तथ्य से परे है.
समाज में सम्मान व प्रतिष्ठा अर्जित करने में कई पीढ़िया खप जाती हैं, किन्तु छवि-मान-सम्मान के ख्वारी में कुछ ही क्षण काफी होता है. यहाँ सांसद की साख-मान-सम्मान-प्रतिष्ठा को दुर्ग के पुलिस अधीक्षक के बयान से बट्टा लगा है.
जैसे ही सांसद महोदय ने दुर्ग के पुलिस अधीक्षक को फोन कर स्पष्ट कर दिया था कि अभियुक्त से उनका कोई संबंध नहीं है, वैसे ही पुलिस कप्तान को प्रेस कांफ्रेंस कर उनके हवाले से छपी खबर का खंडन किया जाना चाहिए था क्योंकि किसी को भी किसी की मानहानि का अधिकार नहीं हो सकता है, चाहे उसका ओहदा कुछ भी हो.
अपनी मानहानि के लिए सांसद महोदय को पुलिस अधीक्षक पर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य के लिए पुलिस के लिए चेतावनी हो सके.
मीडिया को भी खबर छापने से पहले सांसद से बातचीत कर पुष्टि कर लेनी चाहिए थी क्योंकि मीडिया का नैतिकशास्त्र(Ethics of Media) भी यही कहता है. भारतीय प्रेस परिषद् में मामला पहुँचने के बाद संबंधित प्रेस का छिछालेदर और संबंधित प्रेसकर्मी की नौकरी सकते में आ सकती है.
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दूसरी खबर
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मंगलवार को एमपी एमएलए अदालत के न्यायाधीश संतोष कुमार की अदालत ने लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान हुए आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के एक मामले में सांसद सुशील कुमार सिंह को न्यायालय ने बाइज्जत बरी कर दिया है. सूत्रों के मुताबिक सांसद महोदय पर एकमात्र मुकदमा न्यायालय में विचाराधीन था.
मार्च,2014 में सांसद सुशील कुमार सिंह समेत 15 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया था जबकि 30-35 अज्ञात लोगों को पुलिस ने अभियुक्त बनाया था.
दर्ज मुकदमें में हास्यास्पद यह था कि जिस राकेश कुमार सिंह को पुलिस ने नामजद अभियुक्त बनाया था, वही राकेश कुमार सिंह को पुलिस ने पहला ग्वाह बनाया था.यहाँ भी पुलिसिया सिस्टम पर सवालिया निशान पर है.