
औरंगाबाद। रविवार को शहर के शिव वाटिका विद्या मंदिर औरंगाबाद में जिला मंत्री राजीव कुमार सिंह की अध्यक्षता में हिंदू जागरण मंच औरंगाबाद इकाई ने सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाया।कार्यक्रम का शुभारंभ सुभाष चंद्र बोस के तैल चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि कर किया गया कार्यक्रम का संचालन जिला मंत्री शशि सिंह ने किया।
इस मौके पर कार्यक्रम में शामिल जिला अध्यक्ष प्रभु दयाल जी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा सुभाष चंद्र बोस एक महान भारतीय राष्ट्रवादी थे। लोग आज भी उन्हें उनके देश के लिए प्यार को जानते हैं। इस सच्चे भारतीय व्यक्ति का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। सुभाष चंद्र बोस निश्चित रूप से एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे । सुभाष चंद्र बोस की भागीदारी सविनय अवज्ञा आंदोलन के साथ हुई। इस तरह सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बने। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के सदस्य बने। साथ ही 1939 में वह पार्टी अध्यक्ष बने।
अंग्रेजों ने सुभाष चंद्र बोस को नजरबंद कर दिया। इसका कारण उनका ब्रिटिश शासन का विरोध था। हालाँकि, अपनी चतुराई के कारण, उन्होंने 1941 में चुपके से देश छोड़ दिया। फिर वह अंग्रेजों के खिलाफ मदद लेने के लिए यूरोप चले गए। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रूसियों और जर्मनों की मदद मांगी।
1943 में सुभाष चंद्र बोस जापान गए। ऐसा इसलिए था क्योंकि जापानियों ने उनकी मदद की अपील पर अपनी सहमति दे दी थी। जापान में सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन शुरू किया। उन्होंने एक अस्थायी सरकार का गठन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इस अस्थायी सरकार को मान्यता मिली थी।
वही जिला विधि प्रमुख अंजनी कुमार उर्फ सरोज सिंह ने कहा भारतीय राष्ट्रीय सेना ने भारत के उत्तर-पूर्वी भागों पर हमला किया। यह हमला सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में हुआ था। इंडियन नेशनल कांग्रेस कुछ हिस्सों पर कब्जा करने में सफल रहा। 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हो गई। सुभाष चंद्र बोस एक नहीं भूलने वाले राष्ट्रीय नायक हैं। उन्हें अपने देश से अथाह प्रेम था। इस महान व्यक्तित्व ने देश के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया।
प्रदेश महामंत्री अधिवक्ता बीरेन्द्र कुमार ने आज़ाद हिंद फौज ने 21 अक्टूबर 1943 को प्रथम सरकार की स्थापना सिंगापुर में हुई और. भारत के उत्तर पूर्व के कई भागों को स्वतंत्र कर लिया गया और 11 देशों ने उसे मान्यता दी जैसे जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। और कई देशों ने अपने दूतावास भी खोले थे ।
सुभाष बोस 1938 में राष्टीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए, 1939 में बीमार होने पर स्ट्रेचर पर लाये गए और फिर भी अध्यक्ष चुने गए, लेकिन उन्हें जिन लोगों ने उन्हें ज़लील कर त्यागपत्र देने को मजबूर किया, उस दुष्ट मंडली के वंशजों को सदा के लिए त्यागपत्र थमाने का आज दिन है।
आज याद करवा दें, जिस नेताजी पर श्याम बेनेगल ने फ़िल्म बनाई थी The Forgotten Hero, उस भूले-बिसरे हीरो को याद कराने का त्योहार है आज! लगे हाथ बताते चले कि नेता जी पर सात फिल्में और दर्जनों डॉक्यूमेंटरी बनाई गई थी। क्या ये फेसबुक-व्हाट्सअप की नई पीढ़ी जानती है? उसे याद कराना है। आज इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लेमेन्ट एटली के वो शब्द याद करने का दिनहै कि “हमारे चुपचाप जल्दी भारत छोड़ने का कारण गांधी जी के आंदोलन नहीं, बल्कि सुभाष बोस के विदा होने के बाद भी उनकी प्रेरणा से चलने वाले सैनिक और जलसेना के विद्रोह थे।” सोचिए आज़ादी किसने दिलवाई!
नेता जी का आज लालकिले पर स्मरण करना उस दुष्प्रचार की धज्जियां उड़ाता है कि ‘आजादी बिना खड़ग बिना धार’ मिली। बल्कि दीपक जतोई का शाखा वाला गीत भी आज दोहराना है “अमर शहीदां ने सिर देके, बन्निया मुढ कहानी दा, आज़ादी है असल नतीजा वीरां दी कुर्बानी दा।” बेशक गांधी जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता परंतु हज़ारो क्रांतिकारियों को नजरअंदाज करने का पाप, जो अब तक सरकारों से होता रहा, उसके पश्चाताप का भी आज मौका है।
इस देश का असली सत्य है कि हमारे “हाथ मे माला भी है, खंडा भी है, रूह में नानक भी है, बंदा भी है।” सभी देवी देवताओं के हाथ मे शस्त्र भी, शास्त्र भी दोनों रहते है। सुभाष बोस उसी परम्परा के प्रतीक हैं।