
*राजेश मिश्रा*
औरंगाबाद। प्लास्टिक व थर्मोकोल दोनों पर्यावरण के लिए घातक हैं। इसे देखते हुए सरकार द्वारा पॉलीथिन के प्रयोग को प्रतिबंधित तो जरूर कर दिया गया है लेकिन इससे संबंधित जो भी जांच अधिकारी हैं ईमानदारी पूर्वक कहे क्या या संभव हो सका है, पॉलिथीन उपयोग बंद होने के बावजूद जिले के बाजारों में दुकान, रेस्टोरेंट, ठेले पर सब्जी बेचने वालो द्वारा धड़ल्ले से पॉलीथिन का प्रयोग किया जा रहा है।
शुरुआत में नगरपालिका प्रशासन व जिला प्रशासन द्वारा इस दिशा में सख्ती बरती गई। इसके बाद भी अभी तक प्रभावशाली रूप से अंकुश लगता प्रतीत नहीं हो रहा है।पॉलीथिन में बांध कर फेंके गए खाद्य पदार्थों के सेवन से गायों व अन्य पशुओं की मौत हो जाती है। प्लास्टिक न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी को बल्कि गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव डालता है।प्लास्टिक के साथ थर्मोकोल भी खेतों के लिए काफी नुकसान देय है।
थर्मोकोल हवा के साथ खेतों में पहुंच जाता है। खेतों को प्लास्टिक और थर्मोकोल बंजर बना देता है, क्योंकि मिट्टी में दबकर भी नष्ट नहीं होता है।साथ ही मनुष्य के स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। इनमें परोसे गए खानों का सेवन करने से कई बिमारियों का जन्म होता है।प्लास्टिक पर प्रतिबंध सरकार के द्वारा जरूर लगाई थी लेकिन भैंस के आगे बीन बजाने जैसा साबित हो रही है यानी सीधी तौर पर कहे तो इस आदेश को कोई मानने को तैयार ही नहीं है।
जरूरत है विशेष रूप से सख्ती बरतने का।साथ ही इनका उत्सर्जन पर्यावरण को भी दूषित करता है और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को कम करता है। इसलिए इनका त्याग लोगों को करना चाहिए, इनकी जगह पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों का चुनाव करना चाहिए और इन से होने वाले दुष्परिणाम को कम करना चाहिए।