
औरंगाबाद।भले ही औरंगाबाद का सदर अस्पताल अपनी कई नाकामियों को एवं मरीजों को पर्याप्त सुविधा न दे पाने को लेकर चर्चा में रहता है। मगर उसी सदर अस्पताल में कभी कभी चिकित्सकों के द्वारा ऐसे भी काम किए जाते है जो न सिर्फ आश्चर्यजनक होती है बल्कि किसी मरीज के परिजनों के उदास एवं मायूस चेहरों पर खुशियां बिखेरने का काम करती हैं।
ऐसा ही एक मामला रविवार की रात देखने को मिला जहां दो वर्ष की एक बच्ची जो लगभग जीवन की जंग हार चुकी थी उसे चिकित्सकों एवं यहां पदस्थापित नर्सों के अथक प्रयास की बदौलत जीवनदान मिला है। चिकित्सकों के इस प्रयास से बच्ची के माता पिता के गमगीन हुए चेहरे पर खुशियां आई है। उस बच्ची को नई जिंदगी दिलाने में चिकित्सकों के साथ साथ अखिल भारतीय राहुल गांधी यूथ ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज रहमान उर्फ सल्लू खान की भूमिका भी काफी सराहनीय रही और बच्ची के परिजन भी उनके प्रति आभार भी व्यक्त की है।
हुआ यह कि शहर के कुरैशी मोहल्ला के मो नौशाद की पुत्री सना नाज की तबियत खराब थी और उसका इलाज नवाडीह रोड में प्रैक्टिस कर रहे शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर इस्तेफा हेलाल के यहां चल रहा था। लेकिन इलाज के बावजूद धीरे धीरे उसकी स्थिति नाजुक होती चली गई। ऐसे में वहां से उसे रेफर कर दिया गया।बच्ची की स्थिति देखकर परिजनों ने उसके जीवित होने की उम्मीद छोड़ दी। लेकिन किसी की सलाह पर वे बच्ची को लेकर सदर अस्पताल पहुंचे।
इसकी जानकारी सल्लू खान को मिली और बच्ची के किसी रिश्तेदार ने मदद करने की बात कही। सूचना पर सल्लू सदर अस्पताल के बच्चा वार्ड पहुंचे। लेकिन वहां बच्चे के एक भी डॉक्टर नहीं दिखे। सल्लू ने उसे उस वक्त ड्यूटी में रहे हड्डी एवं नस रोग विशेषज्ञ डॉक्टर उदय प्रकाश को दिखाया। जिन्होंने ने भी बच्ची की स्थिति बेहद ही गंभीर बताते हुए आवश्यक दवा लिखी और बेहतर इलाज के लिए रेफर कर दिया।
सल्लू ने सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉक्टर सुनील कुमार को अस्पताल में बच्चे के डॉक्टर न होने की जानकारी दी और उनके द्वारा भी चिकित्सक के न होने की असमर्थता व्यक्त की गई। लेकिन सल्लू ने हिम्मत नही हारी और बच्ची को बच्चा वार्ड ले गए। वहां भी नर्सों द्वारा बच्ची की स्थिति बेहद ही नाजुक बताई गई। इधर बच्ची के परिजन बाहर ले जाने के लिए एंबुलेंस की खोज करने लगे।
लेकिन सल्लू ने परिजन को समझाते हुए अपने रिस्क पर बच्ची को बच्चा वार्ड में भर्ती कराया और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुप कुमार से बात की। डॉक्टर अनुप कुमार जो रात्रि दस बजे अपनी ड्यूटी पूरा कर घर जा चुके थे ने फोन पर ही बच्ची की स्थिति की जानकारी नर्सों से प्राप्त कर इलाज शुरू करवाया और कुछ दवा लिखी।मगर एक दवा अस्पताल में उपलब्ध नहीं थी।सल्लू ने उस दवा को बाजार के एक मेडिकल स्टोर के घर से लाकर नर्स को दिया।
दवा मिलने के बाद बच्ची का इलाज शुरु किया गया। काफी देर के बाद उसकी स्थिति में सुधार दिखा और उसे नया जीवन प्राप्त हुआ। बच्ची की हालत में सुधार आते ही परिजन के आंखों में खुशी के आंसू आ गए और उन्होंने चिकित्सकों को धन्यवाद देते हुए सल्लू खान के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया और कहा कि वे फरिश्ता बनकर आए और अपने रिस्क पर बच्ची को एडमिट कराया जिससे उसकी जान बची।