ब्यूरो रिपोर्ट

एक ब्रिटिश महिला जिनकी भारत के लिए की गई त्याग व बलिदान की कहानी आज भी जीवित है

पुस्तक “लोकराज के लोकनायक” और कर्मयोगी सरला बहन से प्राप्त इनपुट पर आधारित

विशेष। आज ‘कैथरीन’ से भारतीय सभ्यता व संस्कृति के रंग में रंगकर सरला बहन/सरला देवी बनी एक ब्रिटिश महिला के भारत के लिए त्याग व बलिदान की कहानी को पढ़ा. महात्मा गाँधी व उदयपुर के लोगों ने इनके सरल स्वभाव के कारण इनका नामकरण ‘सरला बहन’ कर दिया था.

 

सरला बहन 1932 में भारत आयीं और डॉ मोहन सिंह मेहता के उदयपुर(राजस्थान) स्थित शिक्षण संस्थान में जुड़ीं.
जब सरला बहन से पूछा गया था- आपने अपना देश क्यों छोड़ा?
सरला बहन का जबाव था- “मुझे यह प्रश्न उद्वेलित किया करता था कि कौन सा रास्ता संसार की समस्याओं का समाधान कर सकता है?

 

….तो अंत:मन से जबाव आता था कि भावात्मकता ही पृथ्वी पर शांति, सहकार और श्रम को प्रतिष्ठित कर सकती है. तब मुझे लगा- कम से कम पश्चिमी सभ्यता तो यह काम नहीं कर सकती.इसी प्रश्न की खोज एवं यही प्रेरणा मुझे भारत ले आयी.
सरला बहन ने अपनी पुस्तक: ‘व्यावहारिक वेदांत: एक आत्मकथा’ में लिखा है “जिस प्रकार वेश्या अपने शरीर को ऊँचे दामों पर बेचने की कोशिश करती है.

 

आजकल उसी प्रकार बुद्धिमान मानव अपनी बुद्धि को सबसे ऊँचे भौतिक बाजार में बेचने की कोशिश करता है. यह वेश्या वृत्ति,उस वेश्या वृत्ति से अधिक घृणित और नाशकारी है.सरला बहन ने 1972 में जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर चंबल घाटी में डाकुओं के आत्मसमर्पण हेतु मोहर सिंह और माधो सिंह जैसे खूंखार डाकुओं से जंगल में जाकर मुलाकात की थी. इसके बाद जेपी की पहल पर चंबल घाटी के तकरीबन 180 डाकुओं ने जयप्रकाश नारायण व प्रभावती जी के समक्ष आत्मसमर्पण किया था.

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