
ज्ञानेंद्र मोहन खरे
लघु कथा। अशर्फ़ी आठ बरस का मासूम कश्मीरी बच्चा जिसकी दुनियाँ अम्मी और खाला तक सीमित थी। गुरेज़ घाटी के एक छोटे से गाँव में लकड़ी के घर में रहने वाला अशर्फ़ी क़द काठी में अपनी उम्र से बड़ा दिखता था पर भोलापन और निश्छलता उसके व्यवहार में साफ़ झलकती थी।
उसने अपने अब्बू को नहीं देखा था पर अब्बू की कमी उसे शिद्दत से खलती थी ख़ासकर जब वह हम उम्र बच्चों को उनके अब्बू के कंधों पर घूमते देखता। खाला बताती थी कि अब्बू अपनी भेड़ को खोजते हुए गलती से सरहद पार चले गये थे और उनकी आज तक वापसी नहीं हुई। अम्मी गुजरे कई सालों से गुमशुदा अब्बू का इंतज़ार कर रही थी।
अम्मी और खाला आलू के खेतों में मजूरी करती और मिले पैसों से सभी की गुजर बसर हो रही थी। अशर्फ़ी के गाँव पड़ोसी मुल्क से लगा हुआ था। अब्बू के साथ हुए हादसे ने अम्मी को बुरी तरह से मुत्तासिर किया था और इसी वजह से अम्मी उसे आँखों से ओझल नहीं होने देती थी।
उसके सारे हम उम्र अब भेड़ो को चराने जाते थे पर अशर्फ़ी दिन भर घर में रहता और भेड़ों की सेवा करता। शाम को दोस्तों के साथ खेलता। आज अली ने बताया की सरहद के क़रीब उसने गाड़ियों का जमावड़ा देखा है। शायद हब्बा ख़ातून के पहाड़ो के पास कोई मेला या जलसा होने वाला है।
अब तो स्वादिष्ट व्यंजन मिलेंगे और खेल तमाशे होंगे। बड़ा मज़ा आएगा। अशर्फ़ी के मुँह में पानी आ गया पर उसे यक़ीन था कि अम्मी उसे कभी इजाज़त नहीं देगी। इसलिए उसने चुपचाप अली के साथ जाने का फ़ैसला कर लिया। अम्मी पड़ोस में काम के लिए गई थी और खाला रसोई में व्यस्त थी, अशर्फ़ी ने मौक़ा ताड़ा और अली के साथ सरहद की तरफ़ चल पड़ा।
सरहद पर चहल पहल अशर्फ़ी को बहुत भा रही थी। छोटे शामियाने देख उसकी उत्सुकता चरम पर थी कि अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई दी। सभी से तुरंत घर लौटने की मुनादी हो रही थी। अली हरकत में था और वो अशर्फ़ी का हाथ थाम भागने लगा। रास्ते में अचानक अशर्फ़ी को ढेंचू ढेंचू की आवाज़ सुनाई दी। उसने देखा कि रास्ते में एक गधे का बच्चा घिसट रहा था। उसकी पिछली टांग ज़ख़्मी थी। अशर्फ़ी ने तुरंत उसे उठाया और घर की तरफ़ चल पड़ा। घर पहुँचते ही उसने गधे की मरहम पट्टी की और उसे चारा खिलाया।
अम्मी और खाला को उसकी रहमदिली पर फ़क्र और सुकून का एहसास हो रहा था। खाला ने काफ़ी तहक़ीक़ात के बाद गधे की टाँग ठीक होते तक घर में रखने की इजाज़त दी थी। साथ ही ठीक होने पर उसे वापस छोड़ने की हिदायत भी दी। अशर्फ़ी ने मुख़ालिफ़त की पर अम्मी ने समझाया कि उसकी तरह गधे को भी अपने परिवार के साथ अच्छा लगेगा। उसकी अम्मी परेशान होगी और उसे ढूँढ रही होगी। अशर्फ़ी को समझ आ गया था और वो खाला की बात से सहमत था।
वो दिन भर गधे की सेवा सुश्रुषा में लगा रहता और प्यार से उसे ढेंचू बुलाता। तीन दिनों में ढेंचू उसका सबसे अच्छा दोस्त बन चुका था। अशर्फ़ी की मेहनत रंग लाई और ढेंचू अब ताज़ातरीन हो चुका था। वादे के मुताबिक़ अशर्फ़ी को उसे छोड़ने जाना था। दोपहर में अशर्फ़ी और अली ढेंचू को लेकर नियत स्थान पर पहुँच गया और उसके लिए चारा डाल दिया।
ढेंचू खाने में मग्न हो गया और अशर्फ़ी ने बेमन से अली के साथ घर के जानिब रूखसत किया। अशर्फ़ी का दिल भर आया था । ढेंचू से जुदाई उसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। अम्मी के प्यार दुलार के बाद भी उससे रात का ख़ाना नहीं खाया गया। ढेंचू के ख़्यालों ने उसे रात में नींद सोने नहीं दिया और वो लगातार अल्ला ताला से ढेंचू की सलामती की दुआ माँगता रहा।
सवेरे खाला ने झझकोर के उसे उठा दिया और फटकार लगाने लगी कि उसने गधे को क्यों नहीं छोड़ा। अशर्फ़ी ने देखा कि ढेंचू भेड़ो के साथ चारा खा रहा था। अशर्फ़ी उछल पड़ा और अम्मी को बताया की ढेंचू ख़ुद वापस आया है। अगर उसकी बातों पर एतबार नहीं हो तो अली से पूछ लो। खाला शक करती रही पर अम्मी के एतबार ने ढेंचू को घर में रखने की इजाज़त दे दी। अब अशर्फ़ी गुले गुलज़ार था। ढेंचू के साथ उसका हर लम्हा ख़ुशगवार था। ढेंचू से बार बार लिपटना अशर्फ़ी को बहुत पसंद था। अब ढेंचू सेहतमंद हो गया था और घरेलू काम करने लगा था।
एक दिन सवेरे शोर शराबा सुन अशर्फ़ी नीचे आया तो देख की अम्मी को पुलिस फटकार लगा रही थी और एक शख़्स ढेंचू को ले जा रहा था। अशर्फ़ी ढेंचू से लिपट गया तो दरोग़ा जी ने उसे धक्का दिया और कहा हवालात जाना है क्या? गधा चोरी करते हो? अम्मी की रुलाई फूट पड़ी , वो मिन्नतें करने लगी पर दरोग़ा जी पर कोई असर नहीं पड़ा। देखते देखते ढेंचू अशर्फ़ी की आँखों से ओझल हो गया। ढेंचू के जाते ही अशर्फ़ी का दिल बैठ गया और वो उदास रहने लगा। उसका किसी काम में मन नहीं लगता था।
अम्मी ने उसका मन बटाने के लिये उसका दाख़िला मदरसे में करा दिया। खाला भी उसकी तालीम के लिये फ्रिकमंद थी। एक दिन मदरसे से वापस आते वक्त अशर्फ़ी ने देखा कि एक गधे की बेरहमी से पिटाई हो रही है। नज़दीक जाकर देखा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। वो गधा ढेंचू ही था। अशर्फ़ी ने चचा से ढेंचू को नहीं मारने की अर्ज़ी की। चचा ने रूखे अन्दाज़ में कहा कि बोझा कौन ढोयेगा।
ये गधा केवल खाता है, काम नहीं करता। अशर्फ़ी ने चचा को बताया कि वो जो काम बोलेंगे ढेंचू करेगा। चचा की आँखों में चमक आ गयी और बोले कि सेब की खेप उसे सरहद के पास छोड़ना है और बदले में दिया नमक लाना है। अगर उसने यह काम कर दिया तो वो ढेंचू को आज़ाद कर देंगे। भोला अशर्फ़ी ढेंचू की आज़ादी के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था।
चचा शातिर थे और उनका आतंकवादियों से संबंध था। वे एन केन प्रकारेन असलाह सरहद के गाँव के ज़रिए दहशत गर्दों को मुहैया कराते थे। उन्हें यक़ीन था कि बच्चा गधा और अशर्फ़ी की मासूमियत के ज़रिए सरहद पर मुस्तैद जवानों को चकमा देने में कामयाब होंगे। उन्होंने सेव की पेटी ढेंचू की पीठ पर लाद दी। अशर्फ़ी जल्दी से काम मुक्कमल करना चाहता था।
ढेंचू की पीठ पर घाव उसे बहुत टीस दे रहे थे। रास्ता लंबा था पर किशनगंगा की ठंडक सारी थकान मिटा रही थी। सुरक्षा पोस्ट में चेकिंग के दौरान जवान उसकी मासूमियत से मुत्तसिर थे और उन्होंने उसे चॉकलेट भी दी। मासूम अशर्फ़ी को एहसास नहीं था कि ढेंचू की पीठ पर लदी नमक की बोरियों में कई ग्रेनेड रखे थे। वापसी में गश्ती जवानों ने अशर्फ़ी से जी भर के गुफ़्तगू की और ढेंचू से उसकी मोहब्बत और उसकी सलामती के लिए उठाई ज़हमत की सराहना की।
चचा बेसब्री से अशर्फ़ी का इंतज़ार कर रहे थे। ग्रेनेड हिफ़ाज़त से मिल जाने से चचा बहुत खुश थे पर लालच और मक्कारी का भूत उनके सिर पर सवार था। अशर्फ़ी की लाख मिन्नतों के बाद भी उन्होंने ढेंचू को आज़ाद नहीं किया। अशर्फ़ी लाचार था और फूट फूट कर रो पड़ा। चचा ने बेरुख़ी से कहा कि इन ग्रेनेडों को जवानों के कैंप में फेंकना है और अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उसे पुलिस के हवाले कर देंगे। उसकी अम्मी और खाला को बेघर कर देंगे।
अशर्फ़ी दहशत में था उसे सूरतेहाल के इतना बिगड़ने का अन्दाज़ नहीं था। उसके पास चचा की बात मानने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं था। चचा ने पेटियों में सेब के बीच कई ग्रेनेड रख दिये थे और उसकी पिन निकालने का तरीक़ा अशर्फ़ी को समझा दिया। अशर्फ़ी का दिल बैठा जा रहा था। उसे लगा कि वो काफिर बन जाएगा और अल्लाह उसे कभी माफ़ नहीं करेंगे। उसे दोज़ख़ में यातनाएँ झेलनी पड़ेंगी। उसने अम्मी और खाला को सारा वाक़या बताया तो दोनों सदमे में आ गयी और अल्लाह से सलामती की दुवाएँ माँगने लगी।
जवानों के कैंप का रास्ता किशनगंगा के किनारे की पगडंडियों से होकर गुजरता था। अशर्फ़ी ने तय कर लिया था कि वो जान दे देगा पर मुल्क के साथ ग़द्दारी नहीं करेगा। इसके लिए वो कोई भी क़ुर्बानी देने को तैयार था। रास्ते में उसने ढेंचू को बेतहाशा पीटना शुरू कर दिया। अशर्फ़ी का बर्ताव ढेंचू समझ से परे था। जुल्मों की इंतहा होने पर ढेंचू ने अशर्फ़ी को दुलत्ती लगाई और दौड़ने लगा।
संतुलन बिगड़ने से पीठ पर लदी पेटियों का सामान गिर गया। अशर्फ़ी ने आव ना देखा ताव और तुरंत ग्रेनेड को दरियाँ में फेकने लगा। एक ग्रेनेड के फटने से हुए धमाके से सुरक्षा जवान घटनास्थल पर पहुँच गये और स्थिति को नियंत्रण में लिया। चचा के सारे आदमी भाग गये और जवानों ने अशर्फ़ी को पकड़ लिया जो ग्रेनेड उठा उठा कर दरियाँ में फेंक रहा था।
अशर्फ़ी ने सारा माज़रा दरोग़ा जी को सुनाया और अपना गुनाह क़ुबूल किया। उसने बताया की यह सभी कारनामें उसने ढेंचू की रिहाई के लिए किये क्योंकि वह उससे बेइंतहा मोहब्बत करता है। अशर्फ़ी के बयान पर पुलिस ने चचा और अन्य सभी लोगो को पकड़ लिया और भारी मात्रा में गोला बारूद बरामद किया।मुल्क में बड़ी दहशतगर्दी फैलाने की योजना नाकाम हो गयी थी। पर अशर्फ़ी सहमा हुआ था कि पुलिस उसकी पिटाई करेगी और जेल की हवा खानी पड़ेगी।
अम्मी और खाला का रो रो कर बुरा हाल था। चलो तुम्हें दरोग़ा जी ने बुलाया है की आवाज़ ने उसकी धड़कने तेज कर दी। उसने जाते ही दारोगाज़ी के पैर पकड़ लिए और रहम की गुहार करने लगा और कभी भी इस तरह कि हरकतें दोबारा नहीं करने की क़सम खाई। दरोग़ा जी मुस्कराये और नक़ली ग़ुस्से से बोले इस बार माफ़ किया पर दोबारा ऐसी गलती नहीं करना। अशर्फ़ी की आँखों में कृतज्ञता थी। वो तुरंत अम्मी के नज़दीक जाने के लिए भागा।
अपना सामान तो लेते जाओ- जवान ने पुकारा। अशर्फ़ी ने मुड़ कर देखा तो ढेंचू को खड़ा पाया। अशर्फ़ी ढेंचू से लिपट गया। ढेंचू भी बैठ गया और फिर ज़मीन पर लोटने लगा। अशर्फ़ी गुनगुनाता हुआ घर की ओर रूखसत हुआ। उसका यार ढेंचू जो हमेशा के लिये घर वापसी कर रहा था। अम्मी परवरदिगार का शुक्रिया अदा कर रही थी।