
ज्ञानेंद्र मोहन खरे(वाइस प्रेसिडेंट, स्टार सीमेंट)
आलेख। नकारात्मकता यानी negativity से इंसानी ज़िंदगी का अटूट रिश्ता है। हर एक शख़्स में नकारात्मकता मौजूद है।नकारात्मकता की तीव्रता कम ज़्यादा हो सकती है। सीमित नकारात्मकता सुधार के लिए अवसर पैदा करती है।जीवन में चुनौती उत्पन्न करती है और इंसान बेहतरी के लिए संघर्ष करता है। अगर नकारात्मकता तय सीमा से अधिक हुई तो दुश्वारियाँ पैदा करती है।कभी कभी तो ये जानलेवा भी हो सकती है। नकारात्मकता की तीव्रता को सीमित रखना एक चुनौती है।
तीव्रता उतनी होनी चाहिए जो इंसान बर्दाश्त कर सके और उसका मनोबल न टूटे। उसकी ज़िंदगी मे निराशा नहीं पसरे और वो अपमान के गर्त में न गिरे। जटिल परिस्थितियों में उसका मानसिक संतुलन बरकरार रहे।
ज़िंदगी सार्थक और सफल करना हर मानव जीवन का सपना होता है। इंसान ताउम्र संघर्ष करता है। हर कदम पर उसका नकारात्मकता से सामना होता है। कभी ख़ुद की तो कभी दूसरों की। ख़ुद में मौजूद नकारात्मकता को सकारात्मक सोच से कम किया जा सकता है। इसके लिए सतत प्रयास, अनुशासन और मन पर क़ाबू रखना आवश्यक होता है। पर दूसरों की नकारात्मकता से बचना अत्यधिक कष्टप्रद होता है।
कबीर दास जी को दोहा..
निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छबाये
बिन साबुन पानी बिना निर्मल होत सुहाए
आज के परिपेक्ष्य में उतना प्रासंगिक नही रहा क्योंकि प्रतिस्पर्धा के इस जमाने में आपके इर्द गिर्द के वातावरण की नकारत्मकता चरम पर रहती है। उसकी तीव्रता इतनी ज़्यादा होती है कि इंसान का मनोबल टूट ज्याता है। इन परिस्थितियों में या तो वो पापकर्म करता है या तिल तिल मरता है। आज की परिस्थितियों में वातावरण की नकारात्मकता अकसर इंसान को परेशान करती है और उसके पतन और परेशानी का कारण बनती है।वातावरण में मौजूद नकारात्मकता को रोकना या नकारा सोच बदलना लगभग असंभव होता है।
इंसान की सोच उसके संस्कार और जीवन के अनुभव पर निर्भर करती है। जब इंसान के भीतर नकारात्मकता बढ़ती है तो उसका आचार विचार पैशाचिक हो जाता है।
उसे दूसरों को कष्ट देने में अति आनंद की प्राप्ति होती है। किसी का अस्तित्व विनाश उसके लिए अप्रतिम सुख का ज़रिया बन जाता है। नकारात्मकता की इंतहा में इंसान को पता नहीं चलता कि दूसरों के कष्ट के साथ उसकी भी तबाही अवश्यंभावी है।
जैसा करोगे वैसा भरोगे का जीवन संदेश आज भी शाश्वत सत्य है। वातावरण की नकारात्मकता के साथ चलना समस्या के साथ जीने के सदृश है।
इसका निवारण भी किसी समस्या के निवारण की तरह है। इंसान को बाहरी नकारात्मकता के लिये सीमा तय करनी होगी। इससे समझौते और बर्दाश्त करने का पैमाना बनाना होगा। इसकी तय सीमा पार होने पर इसे नज़रअंदाज़ करना सुनिश्चित करना होगा। नज़रअंदाज़ विनम्रता या बलपूर्वक किया जा सकता है।
प्रभु प्रदत्त जीवन अनमोल है। इसे सार्थक बनाना समस्त जीवधारियों का परम दायित्व है। नकारात्मकता से स्वयं को बचाना सफलता का मूलमंत्र है।
नकारात्मकता जितनी कम होगी, मानसिक अवसाद उतना घटेगा। अगर इंसान मानसिक अवसाद से बच गया तो उसका आत्मबल/मनोबल सदैव बुलंदी पर रहेगा। वह हर मुश्क़िलों का सफलता पूर्वक मुक़ाबला करेगा। इंसान जीवन के हर लम्हे को ख़ुशगवार बना सकेगा।