संस्मरण

बड़ौदा डायनामाइट कांड में पत्रकार सुरेंद्र किशोर को तलाश रही थी सीबीआई,पत्नी रीता सिंह के सिर में जेपी को बचाने में लगे थे आंसू गैस के गोले

बुरी तरह घायल हुई थीं, बेहोश रहीं पीएमसीएच के सर्जिकल वार्ड में, यह खुलासा औरंगाबाद के राकेश कुमार की नई पुस्तक लोकराज के लोकनायक में की गई है

जी बिहार झारखंड के सम्पादक स्वयं प्रकाश सर के फ़ेसबुक वॉल से 

श्री सुरेंद्र किशोर जी देश के पत्रकारों के आदर्श हैं। उनकी लेखनी मिसाल। युवा जीवन क्रांति, संघर्ष से लबरेज बेमिसाल। आत्मश्लाघा से कोसों दूर। अहंकारशून्य। विनम्रता की प्रतिमूर्ति। सहज-सरल। वक्त के पाबंद। अनुशासनप्रिय। आज़ादी के बाद की घटनाओं के साक्षी हैं। इसीलिये एनसाइक्लोपीडिया भी। कभी जीवन में सिद्धान्तों, मूल्यों से कोई समझौता नहीं किया। मनसा-वाचा-कर्मणा में ऐक्य।

सादा जीवन उच्च विचार। प्रकृति प्रेमी। ज़मीनी जुड़ाव। माटी से लगाव अब भी। उनका मौन भी बोलता है। मुस्कान भी। आंखें तो बहुत कुछ कहती हैं। अपने आप में एक संस्थान। संपादक बनने से इसलिए इनकार कर दिया, क्योंकि रात की नींद खराब हो जाती। वह भी जनसत्ता में प्रभाष जी और आउटलुक के आग्रह को ठुकरा दिया।

 

हम जैसों की नज़र में LIVING LEGEND हैं श्री सुरेंद्र किशोर जी। आज भी सक्रिय और युवा हैं। भाभी यानी रीता दीदी भी उनकी ही तरह हैं। मेरा परम सौभाग्य है कि हमें विशेषाधिकार प्राप्त है। असीम अपार स्नेहसिक्त है रोम-रोम। पर हमने मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। वे सेवानिवृत्त शिक्षिका हैं। क्रांतिकारी से घरेलू सर्जक। खैर। आगे बढ़ते हैं। हमारी पीढ़ी के पत्रकारों के आराध्य व आदर्श हैं।

 

लोकराज के लोकनायक पुस्तक के 16वें अध्याय में विस्तार से वर्णन है। शीर्षक है- जब जेपी पर दागे गए आंसू गैस के गोले। नेशनल बुक ट्रस्ट ने इसे प्रकाशित किया है। स्वतंत्रता सेनानी -भारत@75 पुस्तकमाला के तहत। स्तुत्य प्रयास। सार्थक पहल।
पुस्तक रोचक है। नई जानकारियां हैं। पठनीय भी है। संग्रहणीय भी। 29 अध्याय हैं। 223 पन्ने कब खत्म हुए, पता ही नहीं चला। पत्रकारों, शोधकर्ताओं, समाजवादियों, नेताओं, युवा पीढी के लिए बहुत कुछ है। सीखने लायक। प्रेरणा देती है।

 

जीवन में उतारने लायक। पत्रकार मित्र राकेश कुमार को दो दशकों का अनुभव है। मितभाषी, मृदुभाषी, सहज,सरल हैं राकेशजी। लेखन कौशल व शैली की तो कहिए मत। अंत तक बांधे रखती है। गहन शोध किया है भाई राकेश ने। प्रवाह में आप बहते जाएंगे। आनंद के गोते लगाते जाएंगे। कई नए रहस्य खुलेंगे। रोमांच भी होगा। हास्य रस भी है। इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, दर्शनशास्त्र के आचार्यों-छात्रों के लिए तो संदर्भ ग्रंथ है। बहुत बहुत बधाई भाई राजेश जी। सृजन यात्रा जारी रहे।

 

हमें तो बहुत आनंद आया। आपसे बांटना चाहता हूं वह अवर्णनीय आनंद।
तो आइए पढ़ें 16वें अध्याय को। जब जेपी पर दागे गए आंसू गैस के गोले। हू-ब-हू।

चार नवंबर,1974 को पटना में घेराव और प्रदर्शनों के पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के कारण पूरे शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था।चारों तरफ केंद्रीय रिजर्व पुलिस के जवान तैनात कर दिए गए थे।सुरक्षा का ऐसा चाक -चैबंद ,व्यवस्था की गई थी कि आंदोलनकारी सड़क पर निकल ही नहीं पाएं,किंतु अकसर होता यह था कि आंदोलनकारियों के जोश-जुनून के आगे सरकार की पूरी तैयारियां धरी की धरी रह जाती थीं।
चार नवंबर को जेपी के नेतृत्व में मंत्रियों और विधायकों के आवासों को घेरने के लिए महिला आंदोलनकारियों ने भी मन बना लिया था। किंतु पुलिसिया सख्ती सुरसा की तरह मुंह खोले निगलने को खड़ी थी।

 

लेकिन इन महिला आंदोलनकारियों का जुनून हनुमान -सुरसा संघर्ष की तरह था। जिसमंे बजरंगबली सुरसा के मुंह में घुस कान से निकल कर सीता मैया की खोज में लंका की तरफ आगे बढ़ जाते हैं।छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की सक्रिय सदस्य रीता बताती हैं कि चरखा समिति से जुड़ी हम लड़कियों ने पुलिस को चतुराई से छका कर जेपी के नेतृत्व में चार नवंबर के प्रदर्शन में शामिल होने की रणनीति बना ली थी।

 

हुआ यूं कि 3 नवंबर की रात्रि में हमलोग खाने का व अन्य सामान लेकर कदम कुआं स्थित चरखा समिति पहुंच गए थे।
4 नवंबर को गंगा स्नान के बहाने महिलाओें का जत्था पैदल ही छोटी -छोटी टुकड़ियों में गांधी संग्रहालय पहुंच गए।
4 नंवबर को जेपी तकरीबन 10 बजे गांधी मैदान पहुंचे और वहां से आगे बढ़े।उनके साथ आंदोलनकरियों का हुजूम भी विधायक मंत्री आवास की ओर बढ़ा।इस दौरान हम महिलाओं का जत्था भी लाला लाजपत राय मार्ग से छज्जु बाग की तरफ से होते हुए जेपी के नेतृत्व वाले जुलूस से जा मिले।

 

आज पटना में जहां इंदिरा गांधी तारामंडल बना हुआ है,वहीं पुलिस नाकेबंदी का अंतिम द्वार बना हुआ था।उस समय पटना के जिलाधिकारी विजय शंकर दुबे थे और पुलिस उपाधीक्षक आर.डी.सुवर्णो हुआ करते थे।मैं, रीता सिंह जेपी की जीप पर चढ़ने लगी तभी लाठी चार्ज हो गया और अश्रु गैस के गोले दागे गये।मेरे सिर पर अश्रु गैस का गोला गिरा।
मैं घायल हो गई।केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों ने अर्ध बेहोशी की हालत में मुझे लातों से धक्के मारकर नाले में डालने का प्रयास किया।

 

इस बीच एक महिला —GIRIJA DEVI of BIHARI SAO LANE –मेरे लिए फरिश्ता बनकर प्रकट हुई और मुझे बेटी बताकर सी.आर.पी.एफ.से छोड़ने की मिन्नत करने लगी।
इसके बाद क्या हुआ,मुझे याद नहीं ,क्योंकि मैं तब तक बेहोश हो चुकी थी।उस घटना को याद करते हुए प्रख्यात पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने बताया कि उन दिनों मैं नई दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ में बतौर संवाददाता काम किया करता था।
उस दिन मैं काम निपटाकर घर लौटा तो मेरी धर्म पत्नी (रीता सिंह)घर में नहीं मिली।

 

पहले तो मेरे मन में यही विचार आया कि गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया गया होगा,क्योंकि इससे पहले भी तीन,चार, पांच अक्तूबर, 1974 को बिहार बंद के दौरान प्रदर्शन में सख्त भागीदारी के दौरान इन्हेें गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया था,जहां से 13 दिनों बाद रिहा हुई थीं।अगले दिन जब मैं घर से निकला तो विजय कृष्ण (बाद में बिहार सरकार में मंत्री भी रहे) मिल गए। विजय कृष्ण ने कहा कि आप इधर क्या कर रहे हैं ?

 

आपकी पत्नी अश्रु गैस के गोले से बुरी तरह घायल हो गई हैं।
और उन्हें पटना मेडिकल काॅलेज अस्पताल के सर्जिकल वार्ड में बेहोशी की हालत में भरती कराया गया है।मैं इस खबर को सुनते ही पी एम सी एच की ओर भागा।पी एम सी एच के सर्जिकल वार्ड में रीता सिंह से मुलाकात हुई।मैंने देखा कि नानाजी देशमुख भी वहीं एम एल ए वार्ड में भरती हैं।रीता सिंह ने उन स्याह अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि अगले दिन जेपी मुझे देखने मेरे वार्ड में आए थे,जो मेरे लिए सौभाग्य की बात थी।
मुझे याद है कि उन्होंने एक सहयोगी को निदेश दिया था कि
इस लड़की के इलाज व देखरेख में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।
सुरेंद्र किशोर ने उन दिनों की यादों को साझा करते हुए बताया कि मेरा अब रोजाना पी. एम. सी. एच. में आना जाना हो गया था।

एक दिन की बात है।पी. एम. सी. एच. में अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख को देखने आए थे।उन्होंने अपने हाथों से आॅमलेट बनाकर न केवल नानाजी देशमुख को खिलाया,बल्कि वहां जितने लोग बैठे थे,उनको भी।
उन सौभाग्यशाली लोगों में मैं और मेरी धर्म पत्नी रीता सिंह भी शामिल थीं।सुरेंद्र किशोर बताते हैं कि आपातकाल की समाप्ति के बाद बिहार विधान सभा के चुनावों के दौरान जनता पार्टी से विधायिकी की टिकट के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे।
जब उन आवेदनों की छंटनी हो रही थी ,तो जेपी ने लोगों से पूछा कि उस लड़की का अवोदन पत्र कहां है,जिसके सिर पर अश्रु गैस का गोला गिरा था ?

लोगों ने जेपी को बताया कि उन्होंने आवदेन नहीं किया है।
बतौर सुरेंद्र किशोर, हुआ यूं था कि आपातकाल के दौरान बड़ौदा डायनामाइट मुकदमे में मुझे भी सी.बी.आई.खोज रही थी।
मैं उस दौरान मेघालय में भूमिगत था और मेरी पत्नी रीता सिंह जेपी आंदोलन में अति सक्रिय थी तो हम दोनों ने सम्मति से निर्णय लिया था कि परिवार चलाने के लिए किसी एक को कोई स्थायी रोजगार कर लेना चाहिए।इस निर्णय के तहत रीता सिंह ने आपातकाल के दौरान स्कूल में सरकारी शिक्षिका की नौकरी कर ली।

 

साथ ही,रीता सिंह की उम्र उस समय 25 वर्ष से कम थी,जो विधायिकी की न्यूनत्तम योग्यता के लिए आवश्यक होता है।
लेकिन रीता सिंह स्थायी नौकरी छोड़कर किसी भी स्थिति में विधायिकी नहीं लड़ना चाहती थी।(यानी, उसके लिए बाद में भी कोई कोशिश नहीं करना चाहती थी।-सु.कि.)हम दोनों के बीच सहमति के अनुसार मैंने राजनीति की राह पकड़ ली थी।(राजनीति में मैं क्यों नहीं जम पाया,उस पर मैं बाद में कभी विस्तार से लिखूंगा–सु.कि.)

 

बतौर पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने जेपी के साथ संस्मरण साझा करते हुए बताया कि उन दिनों मैं ‘आज’ दैनिक में संवाददाता था।मेरे ब्यूरो चीफ हुआ करते थे-पारसनाथ सिंह।1977 में लोक सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी।इसी सिलसिले में पारस बाबू ने मुझे बताया कि जेपी का साक्षात्कार ‘आज’ दैनिक में प्रकाशित किए जाने का निर्णय संपादक जी ने लिया है।
मुझे जयप्रकाश जी से समय लेने को कहा गया।

 

उन दिनों ‘आज’ अखबार की ख्याति बहुत थी।मैंने जेपी के कदम कुआं स्थित चरखा समिति वाले आवास पर फोन कर जेपी से मिलने का समय मांगा।समय मिल गया।तय समय के अनुसार पारस बाबू और मैं उनके आवास पर पहुंच गए।साक्षात्कार का पूरा जिम्मा ब्यूरो चीफ साहब ने मुझे दे रखा था।उन्हें इस बात की जानकारी थी कि मैंने जेपी आंदोलन को बारीकी से साप्ताहिक प्रतिपक्ष के लिए कवर किया था।
मैं सवाल पर सवाल करता रहा और जेपी शालीनता से सवालों के जवाब देते रहे।साक्षात्कार में बहुत सारी बातें हुईं,किंतु एक सबसे महत्वपूर्ण बात जेपी ने यह कही कि अगर लोक सभा चुनाव हम जीत जाते हैं तो देश भर की विधान सभाओं को भंग करवा देंगे और विधान सभाओं का भी चुनाव होगा।

 

इस खबर को ‘आज’ दैनिक ने प्रमुखता से छापा।
बीबीसी ने आज दैनिक के साभार से उस खबर को लिफ्ट कर देश-दुनिया में अपने सभी संस्करणों में प्रमुखता से प्रसारित किया।अमूमन मैं जेपी के पत्रकार सम्मेलन में जरूर जाया करता था।1977 के विधान सभा चुनाव के बाद हरियाणा में सुषमा स्वराज मंत्री बन गई थीं।उन्हें आठ विभागों का जिम्मा सौंपा गया था,किंतु सुषमा स्वराज चाहती थीं कि वे जेपी का आशीर्वाद लेकर ही मंत्रालय का कार्यभार सभालें।सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल ने मुझे फोन कर कहा कि आप सुषमा को जेपी से मिलवाने का प्रबंध कर दीजिए क्योंकि वे उनका आशीर्वाद लेना चाहती हैं।

चूंकि बड़ौदा डायनामाइट मुकदमे में मेरा नाम भी आया था,स्वराज दंम्पति ही बतौर वकील उस मुकदमे की पैरवी जार्ज फर्नांडीज की तरफ से कर रहे थे ,इस नाते वे मुझे जानते थे।
मैंने उनका जेपी से मुलाकात का समय तय करवा दिया। तय तिथि और समय के अनुसार स्वराज दंपति पटना पहुंचे।
इसके बाद मैं और स्वराज दंपति ,संवाददाता लव कुमार मिश्र और एक फोटोग्राफर किशन के साथ जेपी से मिलने उनके कदम कुआं स्थित चरखा समिति वाले आवास पर पहुंच गए।
जेपी उन दिनों गुर्दे की समस्या से जूझ रहे थे और डायलिसिस के दौर से गुजर रहे थे।

जेपी के निजी सचिव सच्चिदा बाबू ने कहा कि केवल सुषमा स्वराज और फोटोग्राफर ही जेपी से मिलने (फस्र्ट फ्लाॅर)जाएंगे।बाकी लोग नीचे ही इंतजार कीजिए।मैंने सच्चिदा बाबू से अनुरोध किया कि सुषमा स्वराज के साथ उनके पति को तो मिलने दीजिए।बाकी हमलोग नहीं जाएंगे, कोई बात नहीं है।
सच्चिदा बाबू ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया और सुषमा स्वराज के साथ स्वराज कौशल भी जेपी से मिलने उनके कमरे में गए।जेपी से आशीर्वाद प्राप्त कर ही सुषमा स्वराज ने हरियाणा में मंत्रालयों को कार्यभार संभाला।

क्षमा करिएगा। अब निद्रा देवी सता रही हैं। पुस्तक का लोकार्पण शेष है। इंतज़ार करिए।

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