लघु कथा

कछुए से जीवन दर्शन-लघु कथा ज्ञानेंद्र मोहन खरे की कलम से

धीमा और नियमित होने का तात्पर्य धीर गम्भीर और संवेदनशील बन जीवन में चुनौतियों का सामना करना था।

लघु कथा। बचपन में बुजुर्गों ने बताया कि सफल जीने की कला प्रकृति के सानिध्य में रहने से मिलती। हरेक जीवधारी की जीवन शैली में इंसानी जीवन का फ़लसफ़ा मौजूद है। कछुआ हमेशा ज्ञानू के लिए उत्सुकता और आकर्षण का विषय रहा है। बचपन में अक्सर मामा जी के यहाँ जाना और कुएँ में झाँक कछुए को टकटकी लगा कर ढूँढना और घंटों बाद दिख जाने में प्रफुल्लित होना उसे बहुत रोमांचित करता था।

जल थल पर राज करने वाला प्राणी उसके लिए कौतूहल का सबब था। पर कछुए के पीछे क्या जीवन दर्शन छुपा है, को लेकर ज्ञानू बहुत दिग्भ्रमित था। उसे समझ नहीं आता कछुए की तरह धीमे और नियमित रहने जीवन में कैसे सफलता मिलती है। उम्र बढ़ने पर विदित हुआ की आज के इस मशीनी युग में धीमा होना एक अभिशाप है।

 

सरपट भागती ज़िंदगी में धीमा इंसान पीछे छूट जाता है और उसे आंशिक सफलता ही हासिल होती है। उसका जीवन उबाऊ हो जाता है। जीवन में महत्वकांक्षाओं की अहमियत समाप्त हो जाती है।

ज्ञानू की किशोरावस्था में आते आते कुएँ लगभग लुप्तप्राय हो चुके थे और कच्छप दर्शन दुर्लभ हो गए। तकनीकी जमाने के साधनों ने प्रकृति सानिध्य से जीवन दर्शन सीखना लगभग विस्मृत कर दिया था। हाई स्कूल की पढ़ाई के सिलसिले में ज्ञानू पटना में रहने लगे। मामा जी आए तो सभी का चिड़ियाघर घूमने का प्रोग्राम बन गया।

 

चिड़ियाघर की सरीसृप गैलरी में ज्ञानू की कछुए से मुलाक़ात हो गयी। पुरानी यादें यकायक ताज़ा हो गयी। इतने क़रीब से कछुए से रूबरू होने का रोमांच चरम पर था। एक साथ कई रंगों के इतने सारे कछुओं को इत्मीनान से देखने से ज्ञानू का तन मन पुलकित था।

 

कछुए की प्रत्येक गतिविधि उसे चौंका रही थी। लोगों के शोर से उसका गर्दन अंदर छुपा लेना, फिर सावधानी पूर्वक शनैः शनैः आगे बढ़ना कुछ संदेश दे रहा था।

कछुए में छिपा जीवन दर्शन अब ज्ञानू को साफ नज़र आ रहा था। धीमा और नियमित होने का तात्पर्य धीर गम्भीर और संवेदनशील बन जीवन में चुनौतियों का सामना करना था। सुविचारों को विकसित कर, सकारात्मक रवैया अपना ऐसी मानसिकता बनाना कि जीवन में लिए गए निर्णयों पर पछताना नहीं पड़े। कछुए की पीठ जैसा कठोर आवरण इंसान को सशक्त चरित्र वाला बनने का संदेश दे रहा था।

आह्वान कर रहा था कि समय पर दोष निर्णय की क्षमता होनी चाहिए। सही और ग़लत को जाँचने परखने की क्षमता होनी चाहिए। सच के साथ चलने का साहस होना चाहिए। मुश्किलों और दुशवारियों में नैतिकता के साथ चलने की हिम्मत होनी चाहिये। कछुए का दीर्घायु होना उसकी मानसिक दृढ़ता और सुकून का परिचायक है।

 

इसी तरह यदि इंसान का अगर जीवन में मानसिक संतुलन बरकरार रखेगा तो वह हर स्थिति में चाहे वह जितनी भी दुर्गम और विकट हो विजय श्री प्राप्त करेगा। यानी मन चंगा तो कठौती में गंगा कहावत को जीवन के हर पहलू में सच्च्तरितार्थ करना होगा। ज्ञानू के लिए कछुआ अब पथ प्रदर्शक बन चुका था।

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