इतवारी खास

यूक्रेन संकट और भारतीय अर्थव्यवस्था एवं कूटनीति

राकेश कुमार(लेखक-लोकराज के लोकनायक)

इतवारी खास। कोरोना महामारी के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं माँग और आपूर्ति श्रृंखला के बीच संतुलन स्थापित कर कीमतों को स्थिर करते हुए पुनः स्थापित करने की कोशिश में लगी हुईं हैं, लेकिन यूक्रेन-रूस युद्ध ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की पहल को संकट में डाल दिया है। यधपि युद्ध भारत से हजारों किलोमीटर दूर पूर्वी यूरोप में लड़ा जा रहा है किन्तु इस युद्ध का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा और इसका असर भविष्य में और भी दिखेगा। युद्ध संकट से अर्थव्यवस्था के हरेक क्षेत्र में बढ़ती महंगाई की आशंका ने भारत में शैक्षणिक जगत पर भी दबाव बढ़ाने वाला साबित होगा।

रूस-यूक्रेन युद्ध का सबसे ज्यादा और तात्कालिक प्रभाव पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों पर पड़ेगा। ऊर्जा के मुख्य साधन के रूप में पेट्रोलियम व पेट्रोलियम उत्पाद अर्थव्यवस्था के हरेक क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं, चाहे प्राथमिक क्षेत्र हो जैसे कि कृषि समेत सारे संबद्ध क्षेत्र, चाहे द्वितीयक क्षेत्र जैसे कि सारे उद्योग-धंधे औऱ चाहे तृतीयक क्षेत्र जिसमें तमाम तरह की सेवाएं सम्मिलित होती हैं। रूस दुनिया का 13 प्रतिशत पेट्रोलियम और 17 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का उत्पादन करता है। अमेरिका सहित पश्चिमी यूरोप के देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाये जाने से अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती जा रही है।

 

भारत जहां अपनी आवश्यकता का तकरीबन 80 प्रतिशत से ज्यादा कच्चा तेल और 65 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का आयात करता है। वैसे में कच्चे तेल के बढ़ते मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था के हरेक क्षेत्र में महंगाई बढ़ा सकते हैं क्योंकि माल ढुलाई और परिवहन का मध्य आधार कच्चे तेल हैं। कच्चे तेल के मूल्य बढ़ने से भारत को पहले से ज्यादा भुगतान डॉलर में करना पड़ेगा जिससे डॉलर मजबूत होगा और रुपया कमजोर होगा। डॉलर के ज्यादा भुगतान से विदेशी मुद्रा भंडार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। रुपये के कमजोर होने से आयात महंगे होंगे और चालू खाते पर भुगतान संतुलन की समस्या होगी।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में विमानन टरबाइन ईंधन की लागत 19 प्रतिशत बढ़ने से विमान किरायों में तकरीबन 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ोत्तरी की संभावना है। इसका सीधा असर दुनिया की महंगाई को बढ़ाने वाला होगा। भारत अपनी आवश्यकता का दो तिहाई से ज्यादा खाद्य तेलों का आयात कर रहा है। देश की आवश्यकता का तकरीबन दो तिहाई से अधिक सूरजमुखी का खाद्य तेल यूक्रेन से आता है। यूक्रेन-रूस युद्ध ने इस आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करने का काम किया है जो भारत में महंगाई का कारण बनेगा।

भारत अभी डिजिटलाइजेशन की ओर तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था डिजिटलाइजेशन को अपनाने में अपने प्रथम दौर में तेजी से बढ़ रहा है। नैनो तकनीकी और डिजिटल व्यवस्था का मुख्य आधार सेमीकंडक्टर है। सेमीकंडक्टर के निर्माण में प्लेरियम और लियान दो मुख्य घटक हैं। दुनिया में प्लेरियम का मुख्य उत्पादक रूस है जबकि लियान का प्रमुख उत्पादक यूक्रेन है। प्लेरियम और लियान की आपूर्ति बाधित होने से सेमीकंडक्टर महंगी हो जाएंगी जिससे भारत में ‘प्रधानमंत्री ई-विद्या’ के तहत डिजिटल मोड में शिक्षा देने की स्थायी व्यवस्था निर्माण के शिथिल और महंगे हो जाएंगे। इसके अलावा स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी, डिजिटल कैमरे आदि महंगे हो जाएंगे।

यूक्रेन पर हमले के मद्देनजर अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा रूस के बैंकों पर स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे भी भारत समेत दुनिया के कई देशों के लिए परेशानी का सबब बनेगा और दुनिया को महंगाई की ओर धकेलने वाला होगा।वर्तमान में भारत-रूस के बीच सालाना व्यापार आठ अरब डॉलर का है जबकि भारत-अमेरिका सालाना व्यापार सौ अरब डॉलर का है। वैसे में भारतीय अर्थव्यवस्था इस तथ्य के आलोक में व्यापारिक रणनीति बनाकर अपने अर्थव्यवस्था को संकट से उबारा जा सकता है।

यूरोप के देशों में स्टील व इंजीनियरिंग, गेहूं, मोटा अनाज, चाय, कॉफी और फल-सब्जियों समेत अन्य कृषि उत्पादों की मांग बढ़ गई है। भारत यूरोप में इन उत्पादों का निर्यात बढ़ाकर युद्ध काल में होने वाली आर्थिक हानि को कम कर सकता है।सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत की विशिष्ट पहचान है। इकोनॉमिक इंटेलीजेंस यूनिट रिपोर्ट 2021 के मुताबिक यूपीआई यानी यूनाइटेड पेमेंट इंटरफेस व्यवस्था भारत को वैश्विक लीडर के रूप में खड़ा कर दिया है। भूटान, म्यांमार, सिंगापुर, यूएई, अफ्रीकी देश भारत के यूपीआई व्यवस्था को स्वीकार कर रहे हैं। वैस में भारत दुनिया के समक्ष स्विफ्ट के नये विकल्प के रूप में यूपीआई को कुछ संशोधनों के साथ स्थापित कर सकता है।

युद्धकाल और युद्ध के आसन्न संकट के मद्देनजर दुनिया में हथियारों की खरीदगी की होड़ शुरू हो जाती है, वैसे में भारत का रक्षा क्षेत्र आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत खुद को मजबूती के साथ दुनिया के समक्ष स्थापित कर सकती है। अमेरिका के बाद रूस दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। रूस और सऊदी अरब दुनिया के तकरीबन 12-12 प्रतिशत कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं। अमेरिका दुनिया में सर्वाधिक 16 प्रतिशत कच्चे तेल का उत्पादन करता है। रूस की आमदनी का लगभग 43 प्रतिशत ऊर्जा संसाधनों के निर्यात से आता है जबकि वैश्विक तेल निर्यात में रूस की भागीदारी 10 प्रतिशत है।

यूरोप के एक तिहाई और कई एशियाई देशों की प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल की जरूरत रूस से पूरी होती है। यूरोप में रूस द्वारा गैस पाइपलाइन बिछायी गई है जो बेलारूस, पोलैंड, जर्मनी समेत कई देशों से गुजरती है। दुनिया में युद्ध के संकट ऊर्जा कूटनीति को चरम पर पहुंचाते हैं। वर्तमान में कच्चे तेल की दरें 2014 के बाद सबसे ज्यादा है। रूस पर लगे बैंकिंग प्रतिबंधों का सीधा असर तेल टैंकरों और जहाजों को मिलने वाली क्रेडिट गारंटी पर पड़ रहा है। तेल और प्राकृतिक गैस की आधे से अधिक आवश्यकताओं के लिए रूस पर निर्भर रहने वाला जर्मनी ने नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन का संचालन रोक दिया है।

भारत को संकटकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के दीर्घकालीन भंडारण को बढ़ाना होगा।
अमेरिका सहित पश्चिमी यूरोप के देशों रूस पर तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबंध आरोपित कर दिये हैं जिसमें रूस द्वारा बेचे जाने वाले पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद भी शामिल हैं। रूस ने भारत से पुरानी दोस्ती के मद्देनजर आर्थिक संकट से उबारने के लिए पेट्रोलियम कूटनीति के तहत सस्ती दरों पर पेट्रोलियम खरीदने की पेशकश की है। रूस-यूक्रेन संकट के मद्देनजर भारत के लिए यह राहत भरी खबर है क्योंकि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले भारी दबाव सहित भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता से उबरने में मददगार बनेगा किन्तु इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि रूस पर अमेरिकी सहित पश्चिमी देशों द्वारा आरोपित प्रतिबंध के बीच सूस से भारत द्वारा खरीददारी भारत का अन्य देशों के साथ संबंधों को कटु बनाएगा। इससे भारत का अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा। भारत का चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों को हमेशा अपनी शक्ति और अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति के बल संतुलन में रखना होता है।

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